महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित संस्कृत भाषा में रचे गए अठारण पुराणों में से एक पुराण ग्रंथ है। सभी अठारह पुराणों की गणना में ‘पदम पुराण’ को द्वितीय स्थान प्राप्त है। श्लोक संख्या की दृष्टि से भी इसे द्वितीय स्थान रखा जा सकता है। पहला स्थान स्कंद पुराण को प्राप्त है। पदम का अर्थ है-‘कमल का पुष्प’। चूंकि सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी ने भगवान्नारायण के नाभि कमल से उत्पन्न होकर सृष्टि-रचना संबंधी ज्ञान का विस्तार किया था, इसलिए इस पुराण को पदम पुराण की संज्ञा दी गई है। इस पुराण में भगवान् विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ, भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप, तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है।
ब्रह्म सर्वोपरि
'ब्रह्म पुराण' गणना की दृष्टि से सर्वप्रथम गिना जाता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह प्राचीनतम है। काल की दृष्टि से इसकी रचना बहुत बाद में हुई है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। इसमें 'ब्रह्म' को सर्वोपरि माना गया है। इसीलिए इस पुराण को प्रथम स्थान दिया गया है। कर्मकाण्ड के बढ़ जाने से जो विकृतियां तत्कालीन समाज में फैल गई थीं, उनका विस्तृत वर्णन भी इस पुराण में मिलता है। यह समस्त विश्व ब्रह्म की इच्छा का ही परिणाम है। इसीलिए उसकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है।
विस्तार
सम्पूर्ण 'ब्रह्म पुराण' में दो सौ छियालीस अध्याय हैं। इसकी श्लोक संख्या लगभग चौदह हजार है। इस पुराण की कथा लोमहर्षण सूत जी एवं शौनक ऋषियों के संवाद के माध्यम से वर्णित है। 'सूर्य वंश' के वर्णन के उपरान्त 'चन्द्र वंश' का विस्तार से वर्णन है। इसमें श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र का विशेष महत्त्व दर्शाया गया है। यहीं पर जम्बू द्वीप तथा अन्य द्वीपों के वर्णन के साथ-साथ भारतवर्ष की महिमा का विवरण भी प्राप्त होता है। भारतवर्ष के वर्णन में भारत के महत्वपूर्ण तीर्थों का उल्लेख भी इस पुराण में किया गया है। इसमें 'शिव-पार्वती' आख्यान और 'श्री कृष्ण चरित्र' का वर्णन भी विस्तारपूर्वक है। 'वराह अवतार ','नृसिंह अवतार' एवं 'वामन अवतार' आदि अवतारों का वर्णन स्थान-स्थान पर किया गया है।
विषय वस्तु
यह पुराण सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वतंर और वंशानुचरित –इन पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षणों से युक्त है। भगवान् विष्णु के स्वरूप और पूजा उपासना का प्रतिपादन करने के कारण इस पुराण को वैष्णव पुराण भी कहा गया है। इस पुराण में विभिन्न पौराणिक आख्यानों और उपाख्यानों का वर्णन किया गया है, जिसके माध्यम से भगवान् विष्णु से संबंधित भक्तिपूर्ण कथानकों को अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक विस्तृत ढंग से प्रस्तुत किया है। पदम-पुराण सृष्टि की उत्पत्ति अर्थात् ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना और अनेक प्रकार के अन्य ज्ञानों से परिपूर्ण है तथा अनेक विषयों के गम्भीर रहस्यों का इसमें उद्घाटन किया गया है। इसमें सृष्टि खंड, भूमि खंड और उसके बाद स्वर्ग खण्ड महत्त्वपूर्ण अध्याय है। फिर ब्रह्म खण्ड और उत्तर खण्ड के साथ क्रिया योग सार भी दिया गया है। इसमें अनेक बातें ऐसी हैं जो अन्य पुराणों में भी किसी-न-किसी रूप में मिल जाती हैं। किन्तु पदम पुराण में विष्णु के महत्त्व के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी लिया गया है। शंकर का विवाह और उसके उपरान्त अन्य ऋषि-मुनियों के कथानक तत्व विवेचन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

विद्वानों के अनुसार इसमें पांच और सात खण्ड हैं। किसी विद्वान ने पांच खण्ड माने हैं और कुछ ने सात। पांच खण्ड इस प्रकार हैं-

1. सृष्टि खण्ड : इस खण्ड में भीष्म ने सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में पुलस्त्य से पूछा। पुलस्त्य और भीष्म के संवाद में ब्रह्मा के द्वारा रचित सृष्टि के विषय में बताते हुए शंकर के विवाह आदि की भी चर्चा की।
2. भूमि खण्ड : इस खण्ड में भीष्म और पुलस्त्य के संवाद में कश्यप और अदिति की संतान, परम्परा सृष्टि, सृष्टि के प्रकार तथा अन्य कुछ कथाएं संकलित है।
3. स्वर्ग खण्ड : स्वर्ग खण्ड में स्वर्ग की चर्चा है। मनुष्य के ज्ञान और भारत के तीर्थों का उल्लेख करते हुए तत्वज्ञान की शिक्षा दी गई है।
4. ब्रह्म खण्ड : इस खण्ड में पुरुषों के कल्याण का सुलभ उपाय धर्म आदि की विवेचन तथा निषिद्ध तत्वों का उल्लेख किया गया है। पाताल खण्ड में राम के प्रसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है कि भक्ति के प्रवाह में विष्णु और राम में कोई भेद नहीं है। उत्तर खण्ड में भक्ति के स्वरूप को समझाते हुए योग और भक्ति की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को विस्तार से लिया गया है।
5. क्रियायोग सार खण्ड : क्रियायोग सार खण्ड में कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित तथा कुछ अन्य संक्षिप्त बातों को लिया गया है। इस प्रकार यह खण्ड सामान्यत: तत्व का विवेचन करता है।

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